Dhat Girne Ki Dawa
धात गिरने की दवा
धात रोग किसे कहते हैं?
Dhat Girne Ki Dawa, Spermatorrhoea, Spermatorrhoea Treatment
बिना उत्तेजना के भी अनैच्छिक रूप से मल-मूत्र त्याग के दौरान हल्का सा दबाव बनाने पर सफेद रंग का चिपचिपा पानीनुमा लेस लिंग से रिसने लगता है। इसे ही धात गिरना व धात रोग कहते हैं। इस समस्या से ग्रसित लोग नाइटफाॅल, शीघ्रपतन तथा दुर्बलता के शिकार होते हैं।
कई लोग इस बात से चिंतित हो जाते है व तनाव ग्रस्त हो जाते हैं कि धात गिरने की वजह से अकारण उनका वीर्य नष्ट हो रहा है और सेक्स रोग के शिकार हो सकते हैं। यहां बता दें कि इस समस्या में जो द्रव्य लिंग के मुख पर रिसता है, उसमें वीर्य तनिक मात्र भी अंश नहीं होता है। इस द्रव्य को प्रकृति ने जो कार्य सौंपा है उसके अन्तर्गत पुरूष यौनांग की नाली को चिकनाईयुक्त और गीला करने का है और ऐसा इसलिए है कि पुरूष को मैथुन के दौरान वीर्य की गति से होने वाले नुकसान से लिंग का बचाव हो सके।
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अन्य परिभाषा(प्रमेह)-
जब जागृत अवस्था में जाने या अनजाने में मूत्र के साथ या मूत्र के आगे-पीछे स्राव आता है तो इसे प्रमेह कहते हैं। इसका मूल कारण पाचन संस्थान की गड़बड़ी होती है। प्रारम्भ में स्वप्नदोष के लक्षण प्रकट होते हैं। फिर इस लक्षण के साथ प्रमेह जाता है।
प्रमेह रोगी का अनुकूल आहार-
पुराने चावल, पुराना गेहूँ, अरहर, कंगनी(कौनी), चने की दाल, तिल, जामुन, सहजन, परवल, करेला, गूलर, लहसुन, कैथा(कत्था) कमलनाल, खजूर आदि पथ्य हैं।
प्रमेह रोगी के लिए प्रतिकूल आहार-
किसी भी प्रकार का धूम्रपान, मूत्र वेग को रोकना, दिन में सोना, नया चावल खाना, माँस, सेम, तेल, दूध, घी, गुड़, लौकी, कुम्हड़ा, ईख, मधुर और अम्लीय पदार्थ खाना, संभोग करना, निठल्ला बैठे रहना आदि कुपथ्य हैं।
स्मरणीय-
प्रमेह में ‘वीर्य’ निकल जाता है, यह सोचकर कुछ चिकित्सक क्षतिपूर्ति के उद्देश्य से रोगी को दूध, घी, मक्खन, मलाई एवं अन्य वीर्यवर्धक पौष्टिक पदार्थ अधिक से अधिक खाने की सलाह देते हैं, जो लाभदायक न होकर हानिकारक सिद्ध होते हैं, क्योंकि इस रोग का मुख्य कारण पाचन संस्थान का दुर्बल होना है, जिससे दुर्बलता की स्थिति में और अधिक चिकनाई या गरिष्ठ भोजन को पचाना कठिन होता है और वज्र्य पदार्थ(Wastage) अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में मूत्र के साथ निकलने लगता तथा रोग में वृद्धि होती है।
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धात रोग(प्रमेह) की उपयोगी आयुर्वेदिक औषधियाँ-
1. बंग भस्म 125 से 250 मि.ग्रा. मिश्री मिले मक्खन या मलाई के साथ नित्य सुबह-शाम दें, धात रोग में लाभ होगा।
2. मकरध्वज 60 मि.ग्रा. शहद के साथ नित्य सुबह-शाम देकर ऊपर से आँवला का रस पिलायें।
3. रस सिन्दूर एवं वंग भस्म प्रत्येक 125 मि.ग्रा. मिलाकर शहद के साथ नित्य सुबह-शाम दें। पुराना से पुराना प्रमेह ठीक हो जाता है।
4. सुवर्ण वंग 125 मि.ग्रा. यशद भस्म 60 मि.ग्रा. और इलायची चूर्ण 500 मि.ग्रा. मिलाकर मलाई या मक्खन के साथ नित्य 2 बार सेवन करने से नया और पुराना हर प्रकार का प्रमेह दूर हो जाता है।
5. चन्द्रकान्ति रस 1-1 गोली सुबह-शाम शहद के साथ दें।
Dhat Girne Ki Dawa
6. नवरत्न राज मृगांक रस 1-1 गोली सुबह-शाम शहद के साथ दें। बीसियों प्रकार के प्रमेह ठीक हो जाते हैं। औषधि सेवन के बाद मिश्री मिला दूध दें।
7. प्रमेह गज केसरी रस 1-2 गोली सुबह-शाम जल या गुड़मार बूटी के क्वाथ के साथ दें। यह प्रमेह एवं मधुमेह में लाभदायक है। मात्र 3-4 दिन में शुक्रस्राव को रोक देता है।
8. बंगेश्वर रस(बृहत) 1-1 गोली सुबह-शाम शहद के साथ देकर ऊपर से गाय या बकरी का दूध दें। नये-पुराने सभी प्रकार के प्रमेह ठीक हो जाते हैं।
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9. त्रिफला चूर्ण 3-6 ग्राम नित्य रात को सोते समय गर्म जल के साथ दें। बीसियों प्रकार के प्रमेह दूर हो जाते हैं।
10. अश्वगन्धा पाक 10 से 15 ग्राम सुबह-शाम गोदुग्ध के साथ दें। शुक्र एवं प्रमेह संबंधी सभी शिकायतें दूर होंगी।
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