Ayurved Se Karen Dhat Rog Ka Upchar आयुर्वेद से करें धात रोग का उपचार
धात रोग-
बिना इच्छा के स्वतः वीर्यपात होने को धातु क्षय या वीर्य प्रमेह कहते हैं। मल-मूत्र करते समय अण्डे की सफेदी जैसा या लेसदार तरल आने लगता है। अतिशय भोग-विलास या हस्तमैथुन से जननेन्द्रिय की सहिष्णुता इतनी बढ़ जाती है कि तनिक-सी उत्तेजना से वीर्य निकल जाता है।
धात रोग के कारण-
धात रोग के प्रमुख कारण वृक्कों की कमजोरी, वीर्य की अधिकता, वीर्य का पतलापन, हस्तमैथुन, गुदामैथुन, अत्यधिक मैथुन, गंदे विचार, उत्तेजक पदार्थों का सेवन, विभिन्न स्त्रियों से मैथुन, कब्ज, मूत्राशय की खराश, पौष्टिक पदार्थों का अत्यधिक सेवन, गंदा साहित्य पढ़ना, अश्लील चित्र व चलचित्र देखना, अत्यधिक साईकिल चलाना, पेट के कीडे़, मूत्रछिद्र की सूजन, वीर्य थैलियों में ऐंठन, दीर्घकाल तक संभोग न करना, बवासीर इत्यादि। इससे रोगी में सुस्ती, कमजोरी, साहसहीनता, निस्तेजता, शारीरिक व मानसिक कमजोरी, चक्कर आना, शरीर में दर्द, नपुंसकता, नेत्रों के चारों ओर काले घेरे पड़ जाना आदि लक्षण हो जाते हैं।
Ayurved Se Karen Dhat Rog Ka Upchar
आप यह आर्टिकल dhatrog.com पर पढ़ रहे हैं..
धात रोग में आयुर्वेदिक चिकित्सा-
1. यौन शक्तिदा वटी : धात रोग में यौन शक्तिदा की 6 टिकियां विभाजित मात्राओं में 6 सप्ताह तक प्रतिदिन लें। अग्रिम 6 सप्ताह 4 टेबलेट्स प्रतिदिन लें। यह धात रोग, शीघ्रपतन, शिथिलता आदि विकारों में लाभप्रद है।
2. वीटाफिक्स टेबलेट्स: लिंग की बढ़ी हुई संजा को दूर करके वीर्य प्रमेह का नाश करती है। 2 टेबलेट्स प्रतिदिन 3 बार 6 सप्ताह तक लें।
3. प्रभा कम्पाऊंड(पटियाला) : वीर्य जाने के रोग की अति उत्तम औषधि है ये। 2 टिकियां पानी या दूध के साथ रोजाना 3 बार भोजन के बाद लें। पेशाब में एल्ब्यूमिन जाना, पेशाब में जलन, मधुमेह, भगन्दर आदि अनेक रोगों में लाभप्रद है।
4. बंग भस्म : 125 से 250 मि.ग्रा. बंग भस्म प्रति मात्रा सुबह-शाम शहद अथवा मलाई के साथ लें। अच्छे लाभ के लिए 3 ग्राम सितोपलादि चूर्ण एक मात्रा मिलाकर शहद के साथ चाटें।
5. कामदेव चूर्ण : 3 से 6 ग्राम कामदेव चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ लें। यह वीर्य प्रमेह, शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन आदि विकारों को दूर करता है।
6. मेहमुद वटी : अकेले इसके सेवन से धातु जाने के रोग से मुक्ति मिल जाती है। 1-1 टिकिया सुबह व शाम ताजा पानी से लें।
7. चन्द्रप्रभा वटी : यह मूत्र और वीर्य विकारों की प्रसिद्ध औषधि है। इसके सेवन से सभी प्रकार के प्रमेह, शुक्रमेह, मधुमेह, स्वप्नदोष, वीर्य का पतलापन, पौरूष ग्रन्थी शोध आदि अनेक रोगों में लाभ होता है। 2-2 टिकियां दिन में 3 बार दूध के साथ लें।
8. चन्द्रकला वटी : इसके सेवन से प्रमेह, स्वप्नदोष, वीर्य क्षीणता, शुक्रमेह, वीर्य का पतलापन आदि रोगों में लाभ होता है। 1-2 टिकियां 2 बार शहद के साथ लें।
9. रसायन चूर्ण : आंवला गुठली रहित, नीम गिलोय तथा गोखरू बराबर-बराबर लेकर चूर्ण बना लें। 1-1 चम्मच 3 बार विषम भाग मधु-धृत के साथ लें। अभाव में केवल पानी के साथ दें। इसके सेवन से मूत्र कृच्छ, पेशाब की जलन, मल-मूत्र त्याग करते समय वीर्य निकल जाना, स्वप्नदोष आदि रोगों में लाभ होता है। यह उत्तम रसायन है।
10. लौह शिलाजतु वटी : शुद्ध शिलाजीत 96 ग्राम, लौह भस्म 24 ग्राम, अभ्रक भस्म 12 ग्राम तथा बंग भस्म 6 ग्राम लें। तीनों भस्मों को पत्थर के खरल में शुद्ध किया हुआ गीला शिलाजीत डालकर खूब घोंट लें। फिर 25 मि.ग्रा. की टिकियां बना लें। 1-2 टिकियां सुबह-शाम दूध के साथ लें। इसके सेवन से सभी प्रकार के प्रमेह, विशेषकर शुक्रमेह, स्वप्नदोष, दुर्बलता, नपुंसकता आदि में लाभ होता है। हस्तमैथुन से आई कमजोरी को भी दूर करने में यह बहुत मददगार साबित होता है। लगातार 2 मास तक लें।
Ayurved Se Karen Dhat Rog Ka Upchar
11. जीवन सखा चूर्ण : असगंध नागौरी, शतावर, सोंठ, सफेद मूसली, सफेद चन्दन, ईसबगोल की भूसी तथा छोटी हरड़ 10-10 ग्राम मिश्री, 70 ग्राम चूर्ण लें। 3-3 ग्राम दिन में 3 बार दूध के साथ लें। यह प्रमेह और स्वप्नदोष में लाभप्रद है। इसके सेवन से आंतें साफ होती हैं।
12. वृहद पूर्ण चन्द्र रस : जब शुक्रमेह, प्रमेह आदि विकारों में साधारण औषधि से लाभ न हो, तब इसका प्रयोग करें। यह अत्यंत पौष्टिक है। 1-1 टिकियां 2 बार शहद के साथ चाटें।
सेक्स से संबंधित अन्य जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.. http://chetanclinic.com/